त्याग के तीन स्तर हैं- छुड़वाना, छोड़ना और छूटना
छोड़ने का पहला स्तर है- छुड़वाना, दूसरा है- छोड़ना। तीसरा स्तर है- छूटना। इसमें साधक इतना सहज हो जाता है कि उसे किसी वस्तु से लगाव, अधिकार या ममता ही नहीं रह जाती है।

उपनिषदों ने आदेश दिया- जीवन में त्यागपूर्वक भोग हो। पहले त्याग, फिर भोग। संसार का हित साधना त्याग है, अपना हित साधना भोग है। त्याग मनुजता है, देवत्व है तथा भोग पशुता और दनुजता है।
भारत त्याग प्रधान देश है, रामजी ने राज्य का अधिकार त्यागा 14 वर्ष के लिए। महावीर, बुद्ध ने संसार त्यागा सर्वकाल के लिए। भगवान महावीर ने दशवैकालिक सूत्र के द्वितीय अध्ययन में कहा है- त्यागी उसे कहा जाए जो अपने अधीन भोगों को छोड़ता है।
विवशतावश वस्तु का भोग न कर पाना त्याग नहीं है। स्वेच्छा से वस्तु का भोग न करना त्याग है, ऐसा त्यागी व्यक्ति ही त्याग का आनंद लेता है। विवशता में वस्तु का अभोग, अप्रयोग मन को पीड़ा ही प्रदान करता है, आनंद नहीं।
त्याग के तीन स्तर हैं- आपने किसी के दबाव में कोई वस्तु छोड़ दी। वस्तुतः आपने वह वस्तु छोड़ी नहीं है, आपसे छुड़वाई गई है। इस स्थिति में सामनेवाले ने दबाव डाला और आपको छोड़ना पड़ा। इसमें प्रयास छुड़वानेवाले का है, छोड़नेवाले का नहीं, छोड़नेवाले की तो मजबूरी है, लाचारी है। डाॅक्टर ने कह दिया- नशा छोड़ दें, नहीं तो मैं इलाज नहीं करूंगा। यह त्याग का प्रथम स्तर है।
दूसरा स्तर है- स्वेच्छा से छोड़ना, अपने मन पर दबाव खुद बनाना कि हे मन, इस वस्तु को छोड़ अन्यथा तेरा ये भव, अगला भव खराब हो जाएगा। इस स्तर पर व्यक्ति अपने को समझाता है, अपने को दबाता है, ये त्याग है।
छोड़ने का पहला स्तर है- छुड़वाना, दूसरा है- छोड़ना। तीसरा स्तर है- छूटना। इसमें साधक इतना सहज हो जाता है कि उसे किसी वस्तु से लगाव, अधिकार या ममता ही नहीं रह जाती है। वह अपने को इतना तटस्थ बना लेता है कि वस्तु छूट जाती है और उसे अहसास भी नहीं होता कि मैंने कुछ छोड़ा है।
एक प्रसिद्ध प्रसंग है- रांका-बांका पति- पत्नी झोंपड़ी से वन की ओर जा रहे थे। पति को रास्ते में सोने के सिक्के पड़े दिखे। विचार आया- कहीं मेरी पत्नी के मन में सिक्के उठाने का लोभ न आ जाए, इसलिए उन पर मिट्टी डालने लगा। पीछे से पत्नी आई, पूछा- क्या कर रहे थे? बताना पड़ा कि सोने के सिक्के थे, तू न उठा ले, इसलिए मिट्टी डाल दी। पत्नी बोली- कैसे पागल हो? मिट्टी पर मिट्टी डाल रहे हैं। तुम्हें अभी सोने और मिट्टी में अंतर नजर आ रहा है। मेरे लिए संसार का प्रत्येक पदार्थ मिट्टी है।
इस घटना से स्पष्टता बनती है कि पति ने सोना छोड़ा था, पत्नी से सोना छूट गया था। छोड़ने वाले को मन में ये खयाल रहता है कि मैंने कुछ छोड़ा है, पर जिससे पदार्थ छूट जाते हैं उसे यह भाव भी नहीं रहता ।
त्याग के तीन स्तर हैं- छुड़वाना, छोड़ना और छूटना।