अज्ञान मिटते ही दिखेगा सच, शरीर और मन को आत्मा मानना है सबसे बड़ी भूल
आए दिन हमारे अंदर कई तरह के विचार आते हैं। जब कभी भी ये विचार हमारे मन से हटते हैं तो हम अपना सच जान पाते हैं। कई बार हम अपने शरीर और मन को ही आत्मा समझ बैठते हैं जोकि गलत है और यही हमारी सबसे बड़ी भूल होती है।

अज्ञान, आनंदमय विशुद्ध आत्मा पर परदा डाल देता है। यह अज्ञानरूपी परदा मिथ्याज्ञान है, हमें उसे दूर करने का प्रयत्न करते रहना चाहिए। आत्मानुभूति कोई बाहर की वस्तु नहीं कि उसकी पुनः प्राप्ति हो सके। वह तो पहले ही से विद्यमान है।
मैंने अभी आत्मानुभूति नहीं की, इस आशयवाले भाव को मन से निकाल देना चाहिए। निश्चलता या शांति ही आत्मानुभूति है। एक पल भी ऐसा नहीं है, जब आत्मा विद्यमान न हो। जब तक संदेह हो या ‘मैंने नहीं जाना’ का भाव बना रहता है, तब तक वैसे संदेह या उस प्रकार के विचार को मन से निकाल देने का प्रयत्न करते रहना चाहिए।
आत्मा को अनात्मा समझने के कारण से ही वे विचार उठते हैं। जब अनात्मा का नाश हो जाता है, तब केवल विशुद्ध आत्मा बच रहती है। स्थान देने के लिए वहां की भीड़ को हटाना आवश्यक है; जगह तो कहीं बाहर से लानी नहीं है ।
आत्मा को पाना ऐसा कुछ है ही नहीं। यदि पाने की बात होती तो उसका यह मतलब होता कि अब यहां वह नहीं है व उसे प्राप्त करना है। मैं कहता हूं कि आत्मा को पाना नहीं है। तुम ही आत्मा हो; तुम पहले ही से विद्यमान हो ।
तुम अपनी आनंदमय दशा से अपरिचित हो। बीच में अज्ञान आकर आनंदमय विशुद्ध आत्मा पर परदा डाल देता है। यह अज्ञानरूपी परदा मिथ्याज्ञान है, उसे दूर करने का प्रयत्न करते रहना चाहिए। तुम शरीर, मन आदि को ‘आत्मा’ मानते हो, यही तुम्हारी भूल है, इसलिए मन से मिथ्या विचार को हटाना जरूरी है।